नागपुर । बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने अंडरवर्ल्ड डॉन अरुण गवली की रिहाई के आदेश देते हुए कोर्ट ने नागपुर सेंट्रल जेल प्रशासन और सरकार से इस संबंध में जवाब मांगा है। कोर्ट ने सभी पक्षों को चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। माफिया डॉन अरुण गवली को 2012 में पूर्व शिवसेना विधायक कमलाकर जामसंदेकर की हत्या के लिए उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। उस पर 17 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया था। तब गवली के खिलाफ अपराध नियंत्रण अधिनियम कानून (मकोका) लगाया गया था। जिला एवं सत्र न्यायालय के फैसले पर हाईकोर्ट ने भी मुहर लगाई थी। वह पिछले 16 साल से नागपुर सेंट्रल जेल में बंद है। गवली के साथ इस केस में 11 अन्य लोगों को भी सजा सुनाई गई थी। पूर्व शिवसेना विधायक कमलाकर जामसंदेकर की हत्या की सुपारी गवली ने दी थी। 
माफिया से नेता बने अरुण गवली ने कोर्ट में महाराष्ट्र सरकार के 2006 के नियम के तहत रिहाई की याचिका लगाई थी। इस नियम के तहत 14 साल सजा काटने वाले ऐसे कैदियों की रिहाई का प्रावधान किया गया था जिनकी उम्र 65 साल या उससे अधिक हो। उसने अपनी याचिका में फेफड़ों और पेट से संबंधित बीमारी का हवाला भी दिया था। नागपुर सेंट्रल जेल के अधिकारियों ने उसके आवेदन को खारिज कर दिया था। जेल प्रशासन ने दलील थी कि 1 दिसंबर 2015 को जारी एक नई अधिसूचना के तहत मकोका में सजा काट रहे कैदियों को पुराने नियम का लाभ नहीं दिया जा सकता है। कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए जेल प्रशासन और महाराष्ट्र सरकार से जवाब मांगा है। अरुण गवली अब 70 साल का हो चुका है और वह नियम के मुताबिक 16 साल की सजा काट चुका है।
मुंबई की दगली चाल में रहने वाले अरुण गवली की तूती बोलती थी। उसकी गैंग में एक हजार से अधिक बदमाश थे जो उसे डैडी कहकर बुलाते थे। मराठी टोपी पहनने वाला गवली खुलेआम माफिया डॉन दाऊद इब्राहिम को चैलेंज करता था। उस पर दाऊद की बहन के पति की हत्या कराने के आरोप भी लगे थे। दोनों की गैंग में अक्सर मुंबई की गलियों में झड़प की खबर आती थी। दाऊद के पाकिस्तान भाग जाने के बाद मुंबई में गवली की धमक बढ़ गई थी। अरुण गवली का परिवार मूलरूप से मध्य प्रदेश के खंडवा जिले से था। उसके पिता गुलाबराव रोजगार की तलाश में मुंबई पहुंचे थे। पांचवी तक पढ़ाई करने वाला गवली अपने पिता के साथ दूध बेचता था। 1980 में वह राम नाइक गैंग का मेंबर बन गया और अपराध के रास्ते पर चल पड़ा। एक गैंगवार में भाई की मौत के बाद उसने अपना गिरोह बनाया। दाऊद और छोटा राजन के साथ उसने दोस्ती कर ली। 1990 में टाडा कोर्ट ने गवली को सजा सुना दी। इसके बाद वह पुणे की यरवदा जेल से रंगदारी, फिरौती का कारोबार चलाने लगा। उसने अपनी पार्टी अखिल भारतीय सेना बनाई और चिंचपोकली विधानसभा सीट विधायक भी बना था।