भारत में निजी निवेश लगातार बढ़ रहा है। इसकी वजह कारोबार को लेकर बढ़ती उम्मीद है। साथ ही, मौजूदा त्योहारी सीजन में कंजम्पशन डिमांड भी बढ़ी है। आरबीआई के अक्टूबर बुलेटिन के मुताबिक, देश के वृद्धि परिदृश्य को विकास को गति देने वाले घरेलू 'इंजन' से समर्थन मिल रहा है।

आरबीआई बुलेटिन में प्रकाशित 'अर्थव्यवस्था की स्थिति' पर लेख में कहा गया है कि 2024-25 की दूसरी तिमाही में अस्थाई नरमी दिखी है। लेकिन, देश में कुल मांग इससे पार पाने को पूरी तरह से तैयार है। इसका कारण त्योहारी मांग में तेजी और उपभोक्ता भरोसे में सुधार है। इसके अलावा, कृषि परिदृश्य में सुधार के साथ ग्रामीण मांग को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।

लेख में कहा गया है, 'खपत मांग में तेजी के संकेतों और कारोबार को लेकर बढ़ती उम्मीद से निजी निवेश में तेजी आनी चाहिए।' मजबूत बही-खाते के साथ वित्तीय क्षेत्र संसाधनों से लैस होकर निवेश को लेकर तैयार है। इसके साथ सरकार का पूंजीगत व्यय पर लगातार जोर है। इससे कुल मिलाकर निवेश का दृष्टिकोण उज्ज्वल दिखाई देता है।

रेपो रेट बढ़ने से मुद्रास्फीति घटी

आरबीआई के डिप्टी गवर्नर माइकल देबब्रत पात्रा की अगुआई वाली एक टीम के लिखे लेख में कहा गया है, ''वैश्विक अर्थव्यवस्था 2024 की पहली छमाही में मजबूत रही। मुद्रास्फीति में गिरावट से घरेलू खर्च को समर्थन मिला।

आरबीआई के मई, 2022 से प्रमुख नीतिगत दर में 2.5 प्रतिशत की कुल बढ़ोतरी से मुद्रास्फीति को 1.60 प्रतिशत तक कम करने में मदद मिली है। लेख के मुताबिक, 'नीतिगत दर में वृद्धि ने मुद्रास्फीति को स्थिर किया और कुल मांग को नियंत्रित किया, जिससे अवस्फीतिकारी प्रतिक्रियाएं हुईं।

लंबे वक्त से रेपो रेट में कटौती नहीं

रिजर्व बैंक ने महंगाई पर काबू पाने के लिए लंबे वक्त रेपो रेट में बदलाव नहीं किया है, जबकि दुनियाभर के केंद्रीय बैंक नीतिगत ब्याज दरों में कटौती कर रहे हैं। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास का कहना है कि अभी हमारा पूरा ध्यान महंगाई घटाने पर है। केंद्रीय बैंक आगामी दिसंबर की मौद्रिक नीति समीक्षा में ब्याज दरों में कटौती का संकेत दिया था, लेकन सितंबर में खुदरा मुद्रास्फीति बढ़ने से आरबीआई अपने इरादों पर दोबारा विचार कर सकता है।

सितंबर में खुदरा महंगाई दर सालाना आधार पर 5.49 प्रतिशत तक बढ़ गई। यह इजाफा खाने-पीने के चीजों का दाम लगातार बढ़ने से हुआ। खुदरा महंगाई दर अगस्त में 3.65 फीसदी थी, जो इसका पांच साल का सबसे निचला स्तर था।