कोरोना की तीसरी लहर में संक्रमण ने पकड़ी खतरनाक रफ्तार, पर सीएफआर अब भी बेहद कम
नई दिल्ली । भारत में 27 दिसंबर के बाद से कोरोना के मामले हर दिन बढ़ रहे हैं। 27 दिसंबर को 6,780 (मई 2020 के बाद यह सबसे कम संख्या है) मामले दर्ज हुए थे, जो 13 जनवरी को बढ़कर 1,93,418 हो गए। शुरुआत में औसत मौतें नहीं बढ़ रही थीं, लेकिन केरल को छोड़कर 4 जनवरी से बाकी राज्यों में मौतों का आंकड़ा बढ़ने लगा है। क्या अब बल्कि इनसे नुकसान पहुंच सकता है। हम बताते हैं कि ऐसा क्यों है। एक लहर की शुरुआत के लिए मार्कर के तौर पर 14 दिनों के औसत मामलों में दैनिक वृद्धि को देखा जाता है।
इस तरह दूसरी लहर केरल के बाहर पिछले साल 12 फरवरी को शुरू हुई और तीसरी लहर 22 दिसंबर को शुरू हुई। 27 दिसंबर से हर दिन रोजोना के कोविड केस में औसत तौर पर बढ़ोतरी हुई है, लेकिन मौतों का सात दिन का औसत लगातार बढ़ता नहीं दिख रहा है। केस फैटिलिटी रेट (सीएफआर) सिर्फ इसलिए कम नहीं है, क्योंकि डेली इंफेक्शन नीचे है। केरल के बाहर औसत मामले पहले से ही डेल्टा लहर के चरम के 52 फीसदी पर हैं, जबकि औसत मृत्यु अभी भी डेल्टा लहर के शिखर के 3.3 फीसदी पर है। आने वाले दिनों में ये दोनों प्रतिशत बढ़ने की संभावना है, क्योंकि मौतों में बढ़ोतरी आम तौर पर मामलों से दो सप्ताह के अंतराल पर दिखती है।
सीएफआर तुलनात्मक रूप से बहुत कम है, तो कुल मौतें भी काफी कम होंगी, भले ही करंट वेव का पीक डेल्टा वेव से मेल खाता है। सलाह देने या सावधानी बरतने का मतलब यह नहीं है कि लोगों को घरों के अंदर बंद कर देना चाहिए और बिजनेस बंद कर दें। ऐसा इसलिए है क्योंकि जहां अस्पताल में भर्ती होना महंगा है, वहीं मौजूदा लहर में बहुत कम लोगों को इसकी जरूरत पड़ी है। सीएफआर से पता चलता है कि हॉस्पिटल में भर्ती होने वालों की संख्या कम रहने की संभावना है।
सरकारें तीसरी लहर में कम मृत्यु की संभावना के बावजूद सावधानी बरतने की सलाह दे रही हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि अस्पताल में भर्ती होने से लोगों पर आर्थिक दबाव बढ़ सकता है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के अनुसार, निचली 60% आबादी अस्पताल में भर्ती होने (बच्चे के जन्म को छोड़कर) के सबसे महंगे मामलों में करीब 30% का भुगतान उधार लेकर या संपत्ति बेचकर करती है। टॉप की 20% आबादी केवल 15% मामलों में ऐसा करती है।